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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. दार्शनिक तथा वैज्ञानिक प्रणालियों में अन्तर बताइए।
2. दार्शनिक प्रणालियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

दार्शनिक तथा वैज्ञानिक प्रणालियों में अन्तर

दार्शनिकों ने नीतिशास्त्र को दर्शन का अंग माना है, जबकि अन्य विद्वानों ने इसे विज्ञान की श्रेणी में रखा है। स्थूल रूप से नीतिशास्त्र की प्रणाली को कुछ विद्वान दार्शनिक (Philosophical) मानते हैं, जबकि कुछ विद्वान वैज्ञानिक (Scientific) मानते हैं। नीतिशास्त्र की प्रणाली को वैज्ञानिक मानने वालों में रुचि के अनुसार अनेक प्रकार की वैज्ञानिक प्रणालियाँ मानी गई हैं, जैसे भौतिक और जैवकीय प्रणाली ऐतिहासिक अथवा जननिक प्रणाली, मनोवैज्ञानिक तथा विश्लेषणात्मक प्रणाली।

विभिन्न विद्वानों ने दार्शनिक तथा वैज्ञानिक प्रणाली में अनेक अन्तर माने हैं।

(1) दार्शनिक प्रणाली नैतिक आदर्श के स्वरूप को परम सत्य के आधार पर निर्धारित करती है, जबकि वैज्ञानिक प्रणाली उसको अनुभव और प्रत्यक्ष के आधार पर विकसित करती है।

(2) दार्शनिक प्रणाली आलोचनात्मक है। उसमें चिन्तन का विशेष महत्व है। उसमें गम्भीर चिन्तन, विश्लेषण और बौद्धिक अन्तर्दृष्टि की सहायता से प्रदत्तों के अर्थ को समझने की चेष्टा की जाती है। वैज्ञानिक प्रणाली वर्णनात्मक तथा तथ्यात्मक है। इससे अनुभव और प्रत्यक्ष के आधार पर प्रदत्तों को इकट्ठा किया जाता है।

(3) वैज्ञानिक विधि में प्रत्येक घटना को अलग-अलग समझने का प्रयास किया जाता है, जबकि दार्शनिक विधि में प्रत्येक घटना के समस्त पक्षों पर विचार किया जाता है। प्रो. शार्प के अनुसार, "नीतिशास्त्र के विधार्थी ने अपना कार्य तब तक समाप्त नहीं किया है जब तक कि उसने सब प्रकार की मानव प्रकृति के नैतिक निर्णयों का पूरी तरह अध्ययन नहीं कर लिया है।

दार्शनिक प्रणाली

दार्शनिक प्रणाली के अनुयायियों में प्लेटो, अरस्तु, हेंगेल, ग्रीन आदि प्रत्ययवादी दार्शनिक आते हैं। इस प्रणाली के अनुसार नैतिक आदर्श परम सत् अथवा सवस्तु से निगमन द्वारा निकाले जा सकते हैं। दार्शनिक मत यह भूल करता है कि नीतिशास्त्र एक नियामक विज्ञान है। उसकी प्रणाली मात्र दार्शनिक नहीं हो सकती यद्यपि उसका दर्शन से निकट सम्बन्ध अवश्य है।

दर्शन की परिभाषा सेथ ने इन शब्दों में दी है उसकी समस्या नैतिक मूल्य से हमारे निर्णयों की व्याख्या तथा विवेचन है जिस प्रकार सौन्दर्यशास्त्र और तर्कशास्त्र की समस्यायें क्रमशः सौन्दर्यात्मक और तार्किक अथवा बौद्धिक मूल्यों के हमारे निर्णयों की व्याख्या और विवेचन है।' दार्शनिक मत ज्ञेय तथा नैतिक आदर्शों का आधार अज्ञेय को बना देता है। 

जो दार्शनिक नीतिशास्त्र को भौतिक अथवा जैवकीय नियमों पर आधारित मानते हैं उनके अनुसार उसकी प्रणाली भौतिक या जैवकीय है। हरबर्ट स्पेन्सर ने मानव आदर्शों को पशु जगत से निकालने का प्रयास किया है। उन्होंने नैतिक नियम समाजशास्त्रीय नियमों पर मनोवैज्ञानिक, नियम जैवकीय नियमों पर और जैवकीय नियम भौतिक नियमों पर आधारित माना है। उन्होंने इन्हें एक ही विकास क्रम की अवस्था माना है। भौतिक या जैवकीय प्रणाली के समर्थक नीतिशास्त्र और भौतिकशास्त्र तथा जीवशास्त्र का अन्तर भूल जाते हैं। ये दो विधायक विज्ञान हैं जबकि नीतिशास्त्र नियामक विज्ञान है। यह दर्शन के उतने ही समीप है जितना विज्ञान के अतः उसकी पद्धति दार्शनिक तथा वैज्ञानिक पद्धति का मिला-जुला रूप है। अतः उसकी पद्धति को न तो दार्शनिक माना जा सकता है, न ही वैज्ञानिक। वास्तव में नैतिक आदर्श स्वयं सिद्ध है, उनका अपना विशेष स्वरूप है, उनको समाजशास्त्रीय अथवा भौतिक तत्व नहीं माना जा सकता।

ऐतिहासिक अथवा जननिक प्रणाली नैतिक आदर्श की उनके विकास क्रम अथवा उत्पत्ति से व्याख्या करना चाहती है। इनके अनुसार नीतिशास्त्र का कार्य नैतिक आदर्शों और संस्थाओं के मूल्य तथा उनके विकास का विवेचन करना है। ऐतिहासिक अथवा जननिक प्रणाली को मानने वाले विद्वानों की भूल यह है कि उनके द्वारा उद्गम की खोज को तत्व की व्याख्या मान लिया गया है। जैसे कोई वस्तु कैसे उत्पन्न हुई है, यह जानना वैज्ञानिक अथवा तथ्यात्मक दृष्टि से उपयोगी हो सकता है परन्तु उद्गम की दृष्टि से इसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। मूल्य तथ्यों से उत्पन्न नहीं होते हैं। नैतिक आदर्शों की ऐतिहासिक व्याख्या उनकी नैतिक व्याख्या नहीं है। उद्गम के इतिहास में मूल्यों की प्रामाणिकता नहीं होती है। उदाहरण के लिए "मुझे सच बोलना चाहिए का अर्थ यह नहीं होता कि मैंने सच बोला है, बोलता हूँ या बोलूँगा। वह उद्देश्य और विधेय में कोई कार्यकारण सम्बन्ध सहअस्तित्व अथवा किसी क्रम सम्बन्ध का द्योतक नहीं है।

उपयोगितावादी दार्शनिक ह्यूम, बेन्थम और मिल आदि ने नैतिक नियमों को मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित मानकर नीतिशास्त्र में मनोवैज्ञानिक प्रणाली का समर्थन किया है। इस मतानुसार नैतिक आदर्शों तथा नियमों के समर्थन के लिए उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। इसी प्रकार मनुष्य सुख की खोज करता है, इस मनोवैज्ञानिक तथ्य से सुखवादियों ने यह नैतिक नियम निकाला कि उसको सुख खोजना चाहिए। नीतिशास्त्र में मनोवैज्ञानिक प्रणाली का समर्थन करने वाले विद्वान नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के मौलिक अन्तर को भूल जाते हैं। नीतिशास्त्र नियामक विज्ञान है जबकि मनोविज्ञान विधायक विज्ञान है। नीतिशास्त्र आदर्शों का तथा मनोविज्ञान तथ्यों का अध्ययन करता है। मनोविज्ञान के निर्णय वर्णनात्मक और नीतिशास्त्र के निर्णय आदेशात्मक होते हैं। मनोविज्ञान आचार के कारणों का पता लगा सकता है, परन्तु उसके औचित्य की व्याख्या नहीं कर सकता।

वास्तव में नैतिक प्रणाली को न तो वैज्ञानिक माना जा सकता न ही केवल दार्शनिक। यह समन्वयात्मक तथा अनुभवात्मक है। यह नैतिक निर्णयों और नियमों को व्यवस्थित करती है और फिर एक परम शुभ की कसौटी पर उसका मूल्यांकन भी करती है।

जेम्स सेथ के अनुसार "नीतिशास्त्र की सच्ची प्रणाली सुकरातीय प्रणाली है जिसमें व्यवस्थित करने के दृष्टिकोण से मानव के यथार्थ नैतिक निर्णय की सूक्ष्म और पूर्ण परीक्षा की जाती है। नीतिशास्त्र विज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करके वही नहीं रुक जाता अपितु उससे ऊपर उठकर दर्शन के क्षेत्र में पहुँचाता है।'

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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